कमोडोर पेरी के जापान आगमन— जापान के साथ अपना सम्पर्क स्थापित करने में सबसे अधिक तत्परता अमेरिका ने प्रदर्शित की। अमेरिका के राष्ट्रपति ने कमोडोर पेरी के नेतृत्व में एक मिशन इस उद्देश्य से जापान भेजा, कि वह वहाँ जाकर अमेरिकन सरकार के सन्देश को जापान की सरकार तक पहुँचाए। पेरी के इस मिशन के उद्देश्य निम्नलिखित थे- (1) यदि कोई अमेरिकन जहाज जापान के समुद्रतट पर टूट जाये, सो उसके मल्लाहों और यात्रियों को जापान में आश्रय दिया जाये (2) अमेरिकन जहाजों को यह अनुमति हो, कि वे जापान के बन्दरगाहों से कोयला, जल और खाद्य सामग्री आदि ले सकें। (3) जापान के बन्दरगाह अमेरिकन व्यापार के लिए खोल दिए जाएं। 24 नवम्बर,1852 को पेरी ने नारफोक के बन्दरगाह से प्रस्थान किया। उसके साथ में चार जहाज थे। 3 जुलाई, 1853 को पैरी के ये जहाज योकोहामा की खाड़ी में पहुँच गए।
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जापानी सरकार की ओर से उन्हें आदेश दिया गया, कि वे समुद्रतट के समीप न आयें। पर पेरी ने इस आदेश की कोई परवाह नहीं की। वह जापान के समुद्रतट पर पहुँच गया, और अमेरिकन राष्ट्रपति के पत्र को जापानी कर्मचारियों के सुपुर्द कर और यह कह कर लौट गया, कि मैं एक साल बाद फिर आऊंगा। इस बीच में जापानी सरकार अमेरिका की मांग पर भली-भाँति विचार कर ले और अपने उत्तर को तैयार रखे। पेरी द्वारा लाया गया अमेरिकन राष्ट्रपति का पत्र शोगुन के पास पहुंचा दिया गया। शोगन और उसके साथियों ने उस पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया। जापानी सरकार भलीभाँति अनुभव करती थी, कि अब समय की परिस्थिति ऐसी है, कि पाश्चात्य देशों की उपेक्षा कर सकता सम्भव नहीं रहा है। केवल अमेरिका ही नहीं, रूस भी इस समय जापान के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए जोर दे रहा था। उसकी ओर से भी एक मिशन इस समय नागासाकी पहुँच गया था। फ्रेंच जहाज भी जापान के समुद्रतट के आसपास चक्कर लगा रहे थे, और ब्रिटेन भी इस चिन्ता में था, कि शीघ्र से शीघ्र जापान के साथ व्यापारिक सम्बन्ध की स्थापना की जाये।
इस दशा में कमोडोर पेरी ने एक साल तक प्रतीक्षा करना अनुचित समझा। फरवरी, 1854 में वह अपने जहाजों को लेकर फिर जापान पहुंच गया। इन जहाजों में अमेरिकन सैनिक भी बड़ी संख्या में विद्यमान थे और पेरी को यह आदेश था, कि यदि जापानी सरकार अमेरिका की मांगों पर ध्यान न दे, और पेरी को जापान प्रवेश से रोके, तो वह सैन्यशक्ति का प्रयोग कर सके। पर कमोडोर पेरी को अमेरिकन सैन्यशक्ति का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं हुई। जापानी सरकार भलीभांति अनुभव करती थी, कि युद्ध में पाश्चात्य देशों का मुकाबिला कर सकना सम्भव नहीं है। भाप की शक्ति से चलने वाले विशालकाय अमेरिकन जहाजों ने जापान के सैनिक नेताओं को सुचारु रूप से बोध करा दिया था, कि वे उन्नति की दौड़ में पाश्चात्य संसार के मुकाबिले में वे बहुत पीछे रह गए हैं।
अमेरिका के साथ प्रथम सन्धि
पेरी का प्रयत्न सफल हुआ, और 1854 में जापान और अमेरिका में सन्धि हो गई। इस सन्धि की मुख्य शर्तें निम्नलिखित थीं
- विदेशी जहाजों को यह अधिकार रहेगा, कि वे नागासाकी और दो अन्य जापानी बन्दरगाहों में कोयला भरने, रसद प्राप्त करने, ताजा पानी लेने और अपनी मशीनों आदि की मरम्मत करने के उद्देश्य से आ-जा सकें।
- अमेरिका का एक प्रतिनिधि जापान में रह सके।
- यदि कोई अमेरिकन जहाज जापान के समुद्रतट के समीप टूट जाये या डूब जाये, तो उसके मल्लाहों और यात्रियों को यह अनुमति हो, कि वे जापान में आश्रय पा सकें। कमोडोर पेरी के प्रयत्न से अब जापान विदेशी राज्यों के सम्पर्क से बंचित नहीं रह गया। वह पाश्चात्य देशों के लिए अब ‘खुलना प्रारम्भ हो गया।
अमेरिका के बाद अन्य पाश्चात्य देशों ने भी जापान के साथ इसी प्रकार की सन्धियों की। 1854 में इंग्लैण्ड को, 1855 में रूस को और 1855-57 में हालैंड को इसी प्रकार के अधिकार प्राप्त हुए। इस प्रकार जापान का एकान्तवास समाप्त हो गया।
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