बेरोजगारी (बेकारी) का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of unemployment)- प्रायः लोग बेकारी का तात्पर्य व्यक्ति की उस अवस्था से लगाते हैं जिनमें वह बेकार रहता है, या उसे कोई काम नहीं मिलता है।
परन्तु बेकारी का यह बहुत ही संकुचित अर्थ है। वास्तव में बेकारी का तात्पर्य व्यक्ति की उस अवस्था से होता है जिसमें उसे कार्य करने की योग्यता, इच्छा और उसकी तलाश करने पर भी उसे उपयुक्त कार्य नहीं मिलता है। अधिक स्पष्ट करने के लिए मान लीजिए कोई व्यक्ति कार्य करने के योग्य हैं, परन्तु यदि न तो उसकी कार्य करने की इच्छा है और न वह कार्य ढूंढता ही है तो ऐसी स्थिति में उसे बेकार नहीं कहा जा सकता। अब मान लीजिए कि वह कार्य करने के योग्य भी है और कार्य करने की उसकी इच्छा भी है परन्तु वह कार्य तलाश नहीं करता, ऐसी स्थिति में भी उसे बेकार नहीं कहा जा सकता। बेकारी तो व्यक्ति की उस व्यवस्था को कहा जाता है जिसमें
- वह कार्य करने के योग्य हो,
- उसकी कार्य करने की इच्छा हो,
- वह कार्य करने की तलाश करता हो,
- किन्तु उसे उपयुक्त कार्य न मिला हो।
- फ्लोरेन्स “बेकारी – उन व्यक्तियों की निष्क्रियता से परिभाषित की गयी है, जो कार्य करने के योग्य और इच्छुक हो।”
- कार्ल प्रियम “बेकारी श्रम बाजार की वह अवस्था है जिसमें श्रम शक्ति पूर्ति करने के स्थानों की संख्या से अधिक होती है।”
- फेयर चाइल्ड “बेकारी एक सामान्य मजदूरी करने वाले वर्ग के सदस्य का सामान्य काम करने वाले समय में सामान्य वेतन तथा सामान्य कार्य करने वाली दशाओं के • मिलने वाले काम से अनिच्छापूर्वक और जबर्दस्ती अलग कर देना है।”
बेकारी के कारण(Causes of Unemployment).
बेकारी के कारणों को हम निम्नलिखित दो भागों में बाँट सकते हैं-
- बेकारी के सैद्धान्तिक कारण (Theoretical Causes of Unemployment)
- बेकारी के सामान्य कारण (General Causes of Unemployment)
(क) बेकारी के सैद्धान्तिक कारण –
बेकारी के सैद्धान्तिक कारण या बेकारी के सिद्धान्त निम्नलिखित है
- कीन्स का सिद्धान्त (Theory of Keynes)
- एडम स्मिथ का सिद्धान्त (Theory of Adam Smith)
- नवशास्त्रियों का सिद्धान्त (Neo-Classical Theory)
(1) कीन्स का सिद्धान्त (Theory of Keynes)
अधिक धन बचाना और कम खर्च करना बेकारी का प्रमुख कारण है- इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कीन्स (Keynes) महोदय ने बेकारी विषयक एक सिद्धान्त प्रतिपादित किया जिसके अनुसार अधिक धन बचाना और कम खर्च करना बेकारी का मुख्य कारण है। वह कैसे? कीन्स महोदय का कथन है कि जितना अधिक खर्च किया जायेगा उतनी ही अधिक रोजगार में वृद्धि होती है। कीन्स ने खर्च को दो भागों में विभाजित किया है- (1) उपयोग (Consumption) जिसके अन्तर्गत नित्य प्रति में काम आने वाली वस्तुओं जैसे दाल, चावल, आटा, लकड़ी, घी, वस्त्र इत्यादि पर किये जाने वाले व्यय का समावेश होता है, और (2) विनियोग (Investmeent ) जिनके अन्तर्गत कारखानों, मकानों, व्यवसायों, नये कामों इत्यादि पर किये जाने वाले व्यय का समावेश होता है।
(2) एडम सिमथ का सिद्धान्त (Theory of Adam Smith)
पूँजी का अभाव होना ही बेकारी का प्रमुख कारण है सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम सिमथ (Adam Smith) ने भी बेकारी के कारण से सम्बन्धित एक सिद्धान्त प्रस्तुत किया जिसे शास्त्रीय सिद्धान्त (Classical Theory) भी कहते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार पूँजी का अभाव होना ही बेकारी का प्रमुख कारण है, वह कैसे? हम देखते हैं कि उद्योग धन्धे पूँजी पर आधारित होते हैं। अतः जब पूँजी का प्राचुर्य होता है तो उद्योग धन्धों में पर्याप्त वृद्धि होती है। इन उद्योग धन्धों में असंख्य लोगों को रोजगार का अवसर प्राप्त होता है
कार्ल मार्क्स के अनुसार संघर्ष का सिद्धान्त।
(ख) बेकारी के सामान्य कारण
बेकारी चाहे किसी भी प्रकार की हो सबके कारण प्रायः एक से ही होते है। मोटे रूप में भारत में बेकार के कारणों को निम्नलिखित दो शीर्षकों में प्रस्तुत किया जा सकता है।
(अ) वैयक्तिक कारण
बेकारी के प्रमुख वैयक्तिक कारण निम्नलिखित हैं-
(1) आयु (Age) – भारत में सर्वाधिक बेकारी बालकों एवं वृद्धों में पायी जाती है। अनुभव की कमी के कारण कई बार युवा लोगों को भी बेकारी का सामना करना पड़ता है। बालकों को उनकी शारीरिक क्षमता में कमी के कारण प्रायः काम पर नहीं बुलाया। जाता।
(2) व्यावसायिक अयोग्यता (Vocational Inability) प्रायः जिन लोगों में व्यवसाय के प्रति रुचि, योग्यता एवं कुशलता का अभाव रहता है, उन्हें भी बेकारी का सामना करना पड़ता है
ब) अवैयक्तिक कारण
बेकारी के बहुत से ऐसे कारण होते हैं जो व्यक्ति से सम्बन्धित न होकर बाहर से सम्बन्धित होते हैं। ये कारण निम्नलिखित हैं-
(1) जनसंख्या में वृद्धि (Growth in Population)
भारत में बेकारी का प्रमुख कारण यहाँ पर जनसंख्या का द्रुत गति से विकास व ‘जनसंख्या विस्फोट’ (Population Explosion) है। जनसंख्या की वृद्धि के अनुपात से रोजगार के अवसर नहीं बढ़ पाते। अतः यहाँ बेकारी फैलना स्वाभावित है।
(2) सीमित भूमि (Limited Land)
भारत में जनसंख्या में वृद्धि तो हो रही है किन्तु न भूमि तो सीमित ही रहती है और इसीलिए प्रति व्यक्ति भूमि की मात्रा कम होती जा रही है। संयुक्त परिवार में भाइयों के बंटवारे के परिणामस्वरूप भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं जो अनुत्पादक होते हैं। किन्तु इन पर परिवार के समस्त सदस्य कार्य करते हैं। इससे ‘छुपी या अप्रकट बेकारी’ पनपती है।