सामाजिक सर्वेक्षण के चरण – एक सामाजिक सर्वेक्षण के आयोजन को निम्नलिखित चरणों में विभाजित किया जा सकता है-
- समस्या का चुनाव– किसी भी प्रकार के सर्वेक्षण के आयोजन में समस्या का चुनाव मुख्य चरण होता है। यदि विषय सर्वेक्षणकर्ता की रुचि का हो तो वह अधिक लगन व परिश्रम से करता है। सर्वेक्षण के विषय में पूर्व ज्ञान सर्वेक्षण को आयोजित करने में सहायक होता है। विषय साधन सीमा के अन्तर्गत होना चाहिए विषय के चुनाव के समय उसकी उपयोगिता के बारे में जानकारी होना आवश्यक है।
- उद्देश्य का निर्धारण– आयोजन का दूसरा चरण उद्देश्य का निर्धारण है। इसके बाद सर्वेक्षण प्ररचना बनाने में सुविधा होती है।
- सर्वेक्षण का संगठन– सर्वेक्षण योजना के लिए एक उचित संगठन होना आवश्यक होता है। अतः सर्वेक्षण समिति का आयोजन किया जाता है।
- अध्ययन क्षेत्र को परिसीमित करना- सभी तथ्यों को एकत्रित करने का लालच छोड़कर अध्ययन क्षेत्र को परिसीमित करना आवश्यक है वैषयिकता के लिए यह चरण आवश्यक है।
- प्रारम्भिक तैयारियां – सर्वेक्षणकर्त्ता के लिए कुछ प्रारम्भिक तैयारियाँ करना भी आवश्यक रहता है। इन तैयारियों के अन्तर्गत विशेषज्ञों से मिलना, क्षेत्र के लोगों से अनौपचारिक वार्तालाप, आने वाली कठिनाइयों का अनुमान करना आदि सम्मिलित हैं।
- निदर्शन का चुनाव – सर्वेक्षण आयोजन का एक महत्त्वपूर्ण चरण निदर्शन का चुनाव है। उचित निदर्शन होने पर समय, श्रम एवं धन तीनों की बचत होती है।
- बजट बनाना – सर्वेक्षण प्रक्रिया में बजट का निर्धारण एक आवश्यक प्रक्रिया है। सन्तुलित बजट द्वारा सर्वेक्षण कार्य को सफलतापूर्वक संचालित किया जा सकता है यदि बजट नहीं बनाया गया है तो ऐसे स्थिति में बीच में ही सर्वेक्षण कार्य को रोक देना पड़ता है।
- समय सूची बनाना – सर्वेक्षण को संचालित करने के लिए सर्वेक्षण की प्रकृति उद्देश्य कार्यकर्त्ताओं की संख्या आदि के अनुसार समय सूची का निर्माण करना भी आवश्यक होता है।
- अध्ययन पद्धति का चुनाव – सर्वेक्षण का प्रकार, आकार, धन की मात्रा, समय, कार्यकर्त्ताओं की उपलब्धता आदि अध्ययन पद्धति के चुनाव पर आधारित होता है।
- अध्ययन के यन्त्रों का निर्माण- जब तक अध्ययन से सम्बन्धित यन्त्रों अर्थात् प्रश्नावली, अनुसूची, साक्षात्कार निर्देशिका आदि को सावधानीपूर्वक व्यवस्थित ढंग से तैयार न कर लिया जाय सर्वेक्षण कार्य का क्रमबद्ध रूप से संचालित करना सम्भव नहीं होगा।
- अध्ययन कार्यकर्त्ताओं का चुनाव-प्रशिक्षण- अध्ययन हेतु क्षेत्रीय कार्यकर्त्ताओं का चुनाव एवं उन्हें सर्वेक्षण हेतु प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए ताकि कार्य में एकरूपता एवं वैषयिकता बनायी जा सके।
- पूर्व परीक्षण एवं पूर्वगामी सर्वेक्षण – सर्वेक्षण आरम्भ करने से पहले पूर्व परीक्षण एवं पूर्वगामी सर्वेक्षण करने से यह पता लगाया जा सकता है कि जिन उपकरणों का प्रयोग किया जा रहा है वे कितने उपयोगी हैं और पूर्वगामी सर्वेक्षण से पता चल जाता है कि आगे अध्ययन में क्या कठिनाइयाँ आ सकती है और उन्हें दूर किया जा सकता है।
(13) अध्ययन उपकरणों को अन्तिम रूप देना– इन सभी बातों के उपरान्त कमी को दूर करके अध्ययन में प्रयोग किये जाने वाले उपकरणों को अन्तिम रूप से तैयार किया जाता है।
(14) समुदाय को सर्वेक्षण के लिए तैयार करना – सूचना संकलन से पूर्व संदेश वाहनों, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, पोस्टर, सार्वजनिक सभा आदि के माध्यम से चुने गये लोगों के बीच उपयुक्त वातावरण तैयार करना आवश्यक होता है
(15) तथ्यों का संकलन – सर्वेक्षण का मुख्य कार्य तथ्यों का संकलन है। अतः सर्वेक्षण कर्त्ता को सावधानी, लगन, तत्परता, सत्यनिष्ठा व परिश्रम से यह कार्य करना होता है।
(16) तथ्यों का विश्लेषण- उत्तरदाता द्वारा प्राप्त तथ्यों की सार्थकता की जाँच की जाती है।
(17) तथ्यों का वर्गीकरण एवं सारणीयन – प्राप्त तथ्यों को समानता और भिन्नता के आधार पर विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जाता है। प्राप्त संख्याओं को तालिकाओं के रूप में संक्षिप्त करना ही सारणीयन कहलाता है।
(18) तथ्यों का विश्लेषण एवं सामान्यीकरण – विभिन्न तथ्यों की तुलना करके उनमें पायी जाने वाली परस्पर सम्बन्धों के आधार पर कुछ सामान्य निष्कर्ष निकाला जाता है।
(19) रिपोर्ट निर्माण एवं प्रकाशन – सर्वेक्षण की सम्पूर्ण प्रक्रिया की रिपोर्ट तैयार करना और उसे प्रकाशित करना सर्वेक्षण का अन्तिम चरण है।
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि सर्वेक्षण की सम्पूर्ण प्रक्रिया एक-दूसरे से सम्बन्धित है।
सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान में अन्तर
(1) प्राक्कल्पना के आधार पर- सामाजिक सर्वेक्षण में प्राक्कल्पना नहीं होती किन्तु सामाजिक अनुसंधान का आधार प्राक्कल्पना होती है। सामाजिक सर्वेक्षण में प्रत्येक आवश्यक सूचना एकत्रित करने का प्रयत्न किया जाता है। सर्वेक्षण एक संग्रहकर्त्ता है जो एकत्रित सामग्री के सम्भावित उपयोग का विचार रखता है। इसके विपरीत सामाजिक अनुसंधान में समस्या से सम्बन्धित कोई धारणा या प्राक्कल्पना बनायी जाती है। तत्त्पश्चात् इस निर्मित प्राक्कल्पना की सत्यता की जाँच करने के लिये अध्ययन किया जाता है। इस संदर्भ में पार्क का कथन उल्लेखनीय है वह लिखता है, “बहुत संकुचित अर्थ में मुझे यह कहना चाहिए कि सर्वेक्षण कभी भी अनुसंधान नहीं है, यह स्पष्टीकरण है। यह प्राक्कल्पना को परीक्षा के स्थान पर समस्याओं को परिभाषित करता है।”
(2) भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर – सामाजिक सर्वेक्षण का अध्ययन क्षेत्र सीमित होता है, जबकि सामाजिक अनुसंधान का विस्तृत सामाजिक सर्वेक्षण में किसी बड़े भौगोलिक क्षेत्र में अध्ययन किया जाता है, किन्तु उस क्षेत्र के अध्ययन से प्राप्त ऐसे निष्कर्षो, नियमों तथा धारणाओं का निर्माण तथा सामान्यीकरण नहीं किया जाता, जो सभी स्थानों पर लागू हो सके। इसके विपरीत सामाजिक असंधान में सामाजिक घटनाओं तथा व्यवहार के विश्लेषण के लिये प्राक्कल्पना की दृष्टि होने पर उसे सामाजिक सिद्धान्त का रूप दे दिया जाता है और इस प्रकार सामाजिक अनुसंधान से प्राप्त निष्कर्ष अन्य सामाजिक समूहों पर भी सामान्य रूप से लागू कर दिये जाते हैं।
(3) अध्ययन की प्रकृति के आधार पर – सामाजिक सर्वेक्षण व्यावहारिक होता है। जबकि सामाजिक अनुसंधान की प्रकृति प्रायः सैद्धान्तिक होती है। सामाजिक सर्वेक्षण की प्रकृति उपयोगितावादी अथवा व्यावहारिक होती है। समाज में किसी समस्या का समाधान प्रस्तुत करने के लिये सामाजिक सुधार अथवा समाज कल्याण की कोई योजना बनाने के लिये सामाजिक सर्वेक्षण किये जाते हैं। इसके विपरीत सामाजिक अनुसंधान का सम्बन्ध केवल नवीन तथ्यों की खोज के आधार पर सामाजिक सिद्धान्तों का निर्माण करने से है। समाज सुधार अथवा समाज कल्याण की किसी योजना से अनुसंधान का कोई सम्बन्ध नहीं होता है। वह तो ज्ञान-पिपासा को शान्त करने के उद्देश्य से किया जाता है।
(4) विषय- य-वस्तु के आधार पर – सामाजिक सर्वेक्षण का सम्बन्ध विघटनकारी सामाजिक समस्याओं से है जबकि सामाजिक अनुसंधान प्रत्येक सामाजिक प्रघटना से सम्बन्धित है। सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य समाज कल्याण से प्रेरित होता है, अतः सामाजिक सर्वेक्षण का सम्बन्ध उन प्रघटनाओं तथा समस्याओं से होता है जो समाज में विघटन पैदा करती है, जैसे बेकारी, अपराध, निर्धनता, नशाखोरी आदि। सामाजिक सर्वेक्षण इन समस्याओं के कारणों की तथ्यपूर्ण जानकारी प्राप्त करके उनके उन्मूलन की योजना से सम्बन्धित है, परन्तु सामाजिक अनुसंधान हर प्रकार की सामाजिक प्रघटनाओं तथा समस्याओं के विषय में खोज करता है। सामाजिक सम्बन्धों का प्रत्येक पक्ष सामाजिक अनुसंधान की विषय-वस्तु है।
(5) आवश्यकता के आधार पर – सामाजिक सर्वेक्षण समस्याओं के तात्त्कालिक नियंत्रण से सम्बन्धित है जबकि सामाजिक अनुसंधान के अध्ययन से सम्बन्धित है जिनका अविलम्ब समाधान आवश्यक समझा जाता है। सामाजिक अनुसंधान में तात्कालिक समस्याओं अथवा अविलम्ब उपचार आदि से कोई प्रयोजन नहीं होता। सामाजिक अनुसंधान तो देश काल की सीमा से परे मानव समाज में क्रियाशील प्रेरक तथ्यों की खोज करता है।
(6) व्यवस्थाओं के आधार पर – सामाजिक सर्वेक्षण का सम्बन्ध निश्चित मानव समुदाय होता है, जबकि अनुसंधान का सम्बन्ध अमूर्त व्यवस्थाओं से है। सामाजिक सर्वेक्षण किसी विशिष्ट समुदाय अथवा समूह की विशेष परिस्थितियों का अध्ययन करता है। उनका सम्बन्ध मनुष्यों से है, उन मनुष्यों से जो किसी विशेष वातावरण में रहते हैं और जिनकी किसी विशिष्ट समस्या का समाना करना पड़ता है, जैसे कानपुर मजदूरों की गन्दी बस्तियों का अपराध से सम्बन्ध अथवा आगरा में रेडियों कार्यक्रम के प्रति झुकाव आदि। सामाजिक अनुसंधान विशेष व्यक्तियों से सम्बन्धित है, जिनकी प्रकृति अमूर्त है और जो सम्पूर्ण समाज की सामान्य व्यवस्थाएँ हैं।
(7) अध्ययनकर्त्ताओं के आधार पर-सामाजिक सर्वेक्षण अध्ययन दल द्वारा होता है, जबकि सामाजिक अनुसंधान व्यक्तिगत रूप में लिया जाता है। सामाजिक सर्वेक्षण में एक निर्धािरित क्षेत्र के अन्दर सभी महत्त्वपूर्ण तथ्यों का संकलन किया जाता है। अकेला व्यक्ति सम्पूर्ण सर्वेक्षण नहीं कर पाता। अतः सामाजिक सर्वेक्षण एक सामूहिक प्रयास होता है, जिसमें एक निर्देशक के अधीन अनेक सर्वेक्षण- कार्यकर्ता, लिपिक आदि भिन्न-भिन्न कार्य करते हैं। सामाजिक अनुसंधान में अधिक एकाग्रता, लक्ष्यदृष्टि तथा विशिष्ट अनुभव की आवश्यकता होती है जो व्यक्तिगत रूप से ही संभव है। अतः इसमें सामूहिक प्रयास से उल्टी अव्यवस्था हो जाती है। अनुसंधान प्रायः व्यक्तिगत जिज्ञासा तथा ज्ञान पिपासा शान्त करने के लिये होता है और इसमें दूसरों का सहयोग प्राप्त करना संभव नहीं होता।
(8) व्यवसाय के आधार पर – सामाजिक सर्वेक्षण व्यवसाय के रूप में अपनाया जा सकता है किन्तु सामाजिक अनुसंधान नहीं। सामाजिक सर्वेक्षण व्यावहारिक दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी होने के कारण सामाजिक सर्वेक्षण क्षेत्र में विशिष्ट सेवा संस्थायें कार्य करने लगती हैं। व्यक्तिगत रूप से भी संख्याशास्त्री, अन्वेषक सारणीयक आदि का व्यवसाय प्रारम्भ किया जाता है। कई सर्वेक्षण संस्थाएं पारिश्रमिक लेकर सर्वेक्षण कार्य करती हैं। सामाजिक अनुसंधानकर्ता भी अपने अनुसंधान कार्य में अत्यन्त कठोर परिश्रम करता है, किन्तु ऐसा किसी-किसी समय सम्भव है। जीवन भर अनुसंधान कार्य करना कठिन है।
(9) विस्तार तथा गहनता के आधार पर – सामाजिक सर्वेक्षण में विस्तृत अध्ययन और सामाजिक अनुसंधान में गहन अध्ययन होता है। सामाजिक सर्वेक्षण में संगठन से सम्बन्धित प्रत्येक प्रकार की सूचना एकत्रित की जाती है, किन्तु उसका गहन अध्ययन नहीं किया जाता। सामाजिक अनुसंधान में विशिष्ट तथ्यों का बहुत बारीकी से अध्ययन किया जाता है।
(10) उद्देश्य के आधार पर – सामाजिक सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य लोगों का जीवन स्तर ऊँचा करना होता है, किन्तु अनुसंधान का नहीं। सामाजिक दशाओं को सुधारने, भौतिक जीवन को सुख सुविधापूर्वक बनाने के विचार से ही सामाजिक सर्वेक्षण कराये जाते हैं। इसके विपरीत सामाजिक अनुसंधान में ऐसा कोई उद्देश्य नहीं होता।