धर्म एवं दर्शन – कैल्डियनों ने बेबिलोन को अपनी शक्ति का केन्द्र बना का प्राचीन बेबिलोनियन सभ्यता एवं संस्कृति को नव जीवन प्रदान करने का यत्न किया प्राचीन बेबिलोनियन सांस्कृतिक तत्वों को एक बार पुनः कैल्डियनों के हाथ जीवन मिला। लेकिन हम्मुराबी ने नेवुकझेंज्जर द्वितीय के काल तक पश्चिमी एशिया में हुए राजनीतिक परिवर्तनों एवं असीरियन रूपान्तरण के फलस्वरूप बेबिलोनियन धर्म एवं जीवन दर्शन में अनेक आधारभूत एवं अमिट परिवर्तन हो गये थे। इन्हें पूर्णतया सामाप्त कर पुरातन आदर्शों को प्रतिष्ठित करना उनके लिए सरल नहीं था। इसी कारण कैल्डियन अपने लक्ष्य में बहुत सफल नहीं दिखाई पड़ते। लेकिन यह असफलता उन्हें केवल मूल तत्वों की स्थापना में ही मिली। प्राचीन बेबिलोनियन सभ्यता के बाह्य तत्वों उदाहरणार्थ शासन-तंत्र, आर्थिक संगठन विशेषकर वाणिज्य एवं उद्योग- धन्ये साहित्य, कला इत्यादि को पुनः विकसित करने में उन्हें उल्लेखनीय सफलता मिली। इसी लिये मेसोपोटामिया के इतिहास में कैल्डियनों के शासन काल को नव बेबिलोनियन अथवा ‘कैल्डियन पुनर्जागरण युग’ (Chaldean Renaissance) भी कहा जाता है। लेकिन कैल्डियन पुनर्जागण की असफलता का ज्वलन्त प्रमाण इनका धर्म एवं दर्शन है।
चालडियनों प्राचीन बेबिलोनियन धर्म के केवल बाह्य तत्वों को ग्रहण किया। उदाहरणार्थ बेबिलोनियन माईक देवता यहाँ भी प्रतिष्ठित किये गये लेकिन यह धर्म का केवल बाह्य तत्व था। प्राचीन बेबिलोनियन एवं कैल्डियन देवताओं के स्वरूप एवं व्यक्तित्व में पर्याप्त अन्तर था। बेबिलोनियन देवी-देवता मानवी आकांक्षाओं एवं प्रेरणाओं से ओत-प्रोत उनकी दुर्बलताओं से परे न होते हुए अमर्त्य थे तथा वे उपासना, पूजा एवं अभिचार के माध्यम से अनुकूल किए जा सकते थे। उनका सम्बन्ध इसी लोक से स्वीकार किया गया था। इसके विपरीत कैल्डियन देवी-देवता मानवीय गुणों से वंचित, उत्कृष्ट, शानातीत तथा सर्वशक्तिमान थे। इन्हें अभिचार, पूजा-उपासना आदि के द्वारा अनुकूल नहीं बनाया जा सकता था। इनका सम्बन्ध विभिन्न ग्रहों से स्थापित किया गया। इसी लिए कैल्डियन धर्म एक प्रकार का नक्षत्रीय धर्म बन गया। देवताओं के प्रति इस प्रकार के विश्वास एवं आस्था के फलस्वरूप कैल्डियन धर्म में भाग्यवाद, अध्यात्मवाद एवं निराशावाद का उदय हुआ। प्राचीन बेबीलोनियन धर्म में व्यक्तिगत अथवा सामूहिक विपत्ति का कर्ता देवता स्वीकार किया गया। इसी लिए जब बेबिलोनियन देवता की उपासना करते थे तो उनका उद्देश्य केवल इन विपत्तियों को दूर भगाना था इस प्रकार की प्रवृत्ति कैल्डियनों में भी दिखाई पड़ती है। वे भी मानते थे कि मनुष्य दैवी प्रेरणा एवं इच्छा से ही समृद्धि प्राप्त करता है अथवा विपत्तिम से प्रसित होता है। लेकिन कैल्डियनों ने एक नवीन मान्यता विकसित की। अब भविष्य का निर्माण तथा वर्तमान का नियमन दोनों ईश्वर की इच्छा पर छोड़ दिया गया। इसे मनुष्य उपासना अथवा अभिचार द्वारा बदल नहीं सकता था। इसी पृष्ठभूमि में कैल्डियन भाग्यवाद का उदय हुआ जो अपने ढंग का प्राचीनतम उदाहरण है। प्रश्न है कि क्या देवताओं के प्रति इस आत्म-समर्पण की प्रवृत्ति की पृष्ठभूमि में कैल्डियनों की कोई स्वार्थ भावना अर्थात् देवताओं एवं दैवी इच्छाओं को सर्वोपति मानकर कैल्डियन लौकिक अथवा पारलौकिक इच्छाओं की पूर्ति तो नहीं करना चाहते थे। इस प्रकार के प्रश्न उठाए जाने का कारण यह भी है कि कैल्डियनों के पूर्व मेसोपोटामियन सभ्यताओं में इस प्रकार की भावनार विद्यमान थी। लेकिन हम कह सकते हैं कि कैल्डियनों में इस प्रकार की स्वार्थमयी भावना न विकसित हो सकी। कैल्डियनों की पारलौकिक जीवन में न तो तनिक भी आस्था थी न इस आत्म समर्पण एवं नियतिवाद के मूल में उनकी कोई पारलौकिक इच्छा छिपी थी। वास्तव में कैल्डियन केवल देवताओं के रहस्य को न समझ सकने के कारण भाग्यवादी थे।
नक्षत्रिय धर्म एवं भाग्यवाद के विकास के फलस्वरूप इनके धर्म में आध्यात्मवाद का संचार हुआ। प्रस्तुत प्रसंग में इस बात की चर्चा की जा सकती है कि कैल्डियनों के पूर्व मेसोपोटामियन सभ्यताओं में इस प्रकार के तत्व अविकसित अर्थात् कैल्डियन धर्म के पूर्व का मेसोपोटामियन धर्म लौकिक था लेकिन कैल्डियन पूजागीतों तथ स्तुतियों से प्रतीत होता है कि वे देवता को मानवीय गुणों से उळपर मानते थे। वे पाप, पुण्य, सदाचार तथा अनाचार इत्यादि के द्रष्टा तथा पर्यवेक्षक माने गये। अब वे मानने लगे कि मनुष्य को स्वयं पुण्याचरण करना चाहिए तथा पाप से बचना चाहिये। देवी शक्ति केवल इसका निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण करती है। वर्तमान समय में हम यह नहीं कह सकते कि कैल्डियनों को सदाचार से वास्तविक मन्तव्य क्या था? कैल्डियनों की ये सदाचारपरक प्रार्थनाएँ हिब्रू धर्म में भी किंचित् अन्तर के साथ मिलती हैं। इन देवी मान्यताओं के फलस्वरूप कैल्डियन धर्म में देवताओं का स्थान अत्यन्त उत्कृष्ट हो गया तथा मनुष्य एक हेय एवं असहाय प्राणी बन गया। अब मनुष्य ग्रहों में रहने वाले भाग्यविधाता, सर्वशक्तिमान एवं ज्ञानानीत देवताओं की अपेक्षा हीन एवं सत्कर्मविहीन हो गया। उसके लिए देवत्व एक दुर्लभ वस्तु हो गई। कैल्डियन अपने को एक बन्दी मानने लगा जिसके हाथ-पैर जकड़ दिये गये थे और जिसके पास मुक्ति का कोई उपाय नहीं था। दुःख की इतनी करूण कल्पना कभी नहीं की गई थी। अब वे मानने लगे कि मनुष्य पाप का आचरण अपने स्वभाव के कारण करता है। कैल्डियन को इस प्रकार की हेयता की भावना उनके निराशवाद में बदली कैल्डियन निराशावाद के सम्बन्ध में एक प्रश्न उठाया जा सकता है कि इसका प्रभाव इनके सदाचार पर कहाँ तक पड़ा? वास्तव में कैल्डियन सभ्यता की पूर्ववत मेसोपोटामिया की तीनों सभ्यताओं में लौकिकता को इतनी अधिक महत्ता मिली थी कि यहाँ नैतिकता एवं सदाचार का वास्तविक अर्थ में विकास हो ही न] सका। एतदर्थ चिरचित अतीत की पृष्ठभूमि में कैल्डियन संस्कृति में विकसित नैतिकता प्रौढ़ एवं पुष्ट हो ही नहीं सकती थी। इसी लिए कैल्डियन धर्म में निराशावाद का विकास तो हुआ लेकिन इसके परिणामस्वरूप हम जिन तत्वों की आशा करते हैं उनका यहाँ विकास न हो सका जीवन के प्रति केडियन निराश अवश्य हुए। लेकिन शरीर को कष्ट देना उन्हें स्वीकार्य न था तपश्चर्या, व्रतादि जो जीवन के प्रति निराशा व्यक्ति के लक्षण हैं, कैल्डियनों में नहीं मिलते। कैल्डियन उतने ही लौकिक इच्छाओं की पूर्ति के आकांक्षी तथा वैषयिक थे जितने दूसरे लोग कैल्डियन साहित्य में जो स्तुतियाँ तथा प्रार्थनाएँ हैं उनमें यदि एक ओर श्रद्धा, दया एवं शुचिता का उल्लेख गुणों के रूप में किया गया है तो दूसरी ओर अत्याचार, मिथ्यापवाद तथा क्रोध को दुर्गुणों के रूप में स्वीकार किया गया है। लेकिन इनका सम्बन्ध आनुष्ठानिक शुचिता और अशुचिता से था जिनका उद्देश्य भौतिक समृद्धियाँ प्राप्त करना था. न कि किसी नैतिकता अथवा अनैतिकता से ।