Sociology

भ्रष्टाचार क्या है? इस हेतु उत्तरदायी कारणों की विवेचना कीजिए।

भ्रष्टाचार क्या है? इस हेतु उत्तरदायी कारणों की विवेचना कीजिए।

भ्रष्टाचार क्या है? – भ्रष्टाचार प्रत्येक युग । में किसी न किसी रूप में होता रहा है। यह बात दूसरी है कि किस युग में कितना भ्रष्टाचार रहा है। इसलिए भ्रष्टाचार का प्रयोग संकीर्ण अर्थों में न होकर व्यापक अर्थों में किया जाता है। भ्रष्टाचार की व्याख्या केवल आधुनिक युग में ही नहीं की जाती […]

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पिछड़े वर्गों की अवधारणा का अर्थ क्या हैं? इसकी विशेषताएँ बताइए।

पिछड़े वर्गों की अवधारणा का अर्थ क्या हैं? इसकी विशेषताएँ बताइए।

पिछड़े वर्गों की अवधारणा का अर्थ – देश के संविधान में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के समान पिछड़े वर्गों की परिभाषा नहीं दी गई है। इसमें केवल पिछड़े वर्गों की स्थितियों के अन्वेषण के लिये ‘आयोग’ (Commission) की नियुक्ति का प्रावधान है। अनुच्छेद 340 राष्ट्रपति को पिछड़े वर्ग सम्बन्धी आयोग की नियुक्ति प्रदान करता

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पिछड़े वर्गों की प्रमुख समस्याएं क्या है? इन समस्याओं के समाधान हेतु सरकारी प्रयासों का वर्णन कीजिये।

पिछड़े वर्गों की समस्याएं क्या है? इन समस्याओं के समाधान हेतु सरकारी प्रयासों का वर्णन कीजिये।

पिछड़े वर्गों की समस्याएं ( problems of backward classes) – परम्परागत रूप में पिछड़े वर्गों की समस्याएँ लगभग वही हैं जो अन्य निर्बल वर्ग (weaker section) जैसे अनुसूचित जातियों की हैं। हाँ उनकी मात्रा (Quantity) में अन्तर अवश्य है। वह यह कि अनुसूचित जनजातियों की तुलना में पिछड़े वर्गों की समस्यायें कुछ कम गम्भीर हैं।

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बेरोजगारी (बेकारी) का अर्थ एवं परिभाषा बताते हुए इसके कारण स्पष्ट कीजिए।

बेरोजगारी (बेकारी) का अर्थ एवं परिभाषा बताते हुए इसके कारण स्पष्ट कीजिए।

बेरोजगारी (बेकारी) का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of unemployment)- प्रायः लोग बेकारी का तात्पर्य व्यक्ति की उस अवस्था से लगाते हैं जिनमें वह बेकार रहता है, या उसे कोई काम नहीं मिलता है। परन्तु बेकारी का यह बहुत ही संकुचित अर्थ है। वास्तव में बेकारी का तात्पर्य व्यक्ति की उस अवस्था से होता

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बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकारी प्रयास कौन-कौन से हैं?

बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकारी प्रयास कौन-कौन से हैं?

बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकारी प्रयास (Government Effots to Remove Unemployment) – एक लोकतान्त्रिक देश की सम्पन्नता व समृद्धता केवल इस बात पर निर्भर नहीं करती कि उसके पास प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक स्रोत व संसाधन उपलब्ध हैं, बल्कि इस बात पर भी निर्भर करती है कि इन स्त्रोतों व संसाधनों के विदोहन में

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मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।

मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।

मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद- मार्क्स ने अपने अध्ययन में इतिहास का प्रयोग एक विशिष्ट प्रकार से किया है। जिसे इतिहास की भौतिकवादी अवधारणा अथवा ऐतिहासिक भौतिकवाद कहा जाता है। इस सिद्धान्त में मार्क्स भौतिक शब्द का प्रयोग चेतनाहीन पदार्थ के रूप में न करके सामाजिक परिवर्तन की बात करते हैं। मार्क्स का यह मानना है

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भारत में समाजशास्त्र के उदय पर चर्चा कीजिए।

भारत में समाजशास्त्र के उदय पर चर्चा कीजिए।

भारत में समाजशास्त्र के उदय – समाजशास्य मूलरूप से सामाजिक सम्बन्धों और सामाजिक ढांचे का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। अतः इस रूप में इसका इतिहास अधिक पुराना नहीं हैं लेकिन मूल रूप से यह हजारों वर्ष पुराना है। पश्चिमी समाजों में समाजशास्त्र 1. समाजशास्त्र के विकास की प्रथम अवस्था समाजशास्त्र के क्रमबद्ध अध्ययन में

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प्रसारवादी सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? प्रसारवाद के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।

प्रसारवादी सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? प्रसारवाद के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।

प्रसारवादी सिद्धान्त – प्रसारवाद से तात्पर्य विस्तारवादी विचारधारा से है। वस्तुतः प्रसारवाद एक ऐसा सिद्धान्त है जिसमें एक सांस्कृतिक समूह दूसरे सांस्कृतिक समूह में सांस्कृतिक तत्वों या संकुल आदान-प्रदान कर विस्तार या फैलाव करता है। यहीसांस्कृतिक फैलाव या विस्तार ‘प्रसार’ कहलाता है, जबकि इस विचारधारा को प्रसारवाद कहा जाता है। प्रसारवादी सिद्धान्त को एक अर्थ

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कार्ल मार्क्स के अनुसार संघर्ष का सिद्धान्त।

कार्ल मार्क्स के अनुसार संघर्ष का सिद्धान्त।

कार्ल मार्क्स संघर्ष का सिद्धान्त – मार्क्स 1848 ई. में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘साम्यवादी घोषणापत्र (Communist Manifesto) मेलिखते है कि “अभी तक का इतिहास वर्ग संघर्षों का इतिहास रहा है।” मार्क्स के अनुसार समाज में हमेशा दो वर्ग रहे हैं और उनके बीच संघर्ष पाया जाता है उन दोनों के संघर्ष से ही समाज में

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