मूल कर्तव्यों की आवश्यकता-भारत सरकार द्वारा गठित 42वें संविधान संशोधन समिति का मत था कि जहाँ संविधान में नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है, वहाँ मूल कर्तव्यों का भी समावेश होना चाहिए। अधिकार और कर्तव्य एक-दूसरे के अन्योन्याश्रित होते हैं। प्रस्तुत संशोधन संविधान इसी कमी को दूर करने के लिए पारित किया गया है। समिति के सदस्यों का विचार था कि भारत में लोग केवल अधिकारों पर जोर देते हैं, कर्तव्यों पर नहीं। किन्तु संविधान-समिति के सदस्यों का यह मत बिल्कुल गलत है। प्रारम्भ से ही भारत में कर्त्तव्यों के पालन पर विशेष बल दिया जाता रहा है। भारत के सभी धर्मग्रन्थों में कर्तव्य पालन का ही उपदेश प्रमुख है। गीता और रामायण जैसे महान ग्रन्थ हमें अधिकारों की परवाह किये बिना अपने कर्तव्यों के पालन करने का ही उपदेश देते हैं। कर्त्तव्यों का पालन करना व्यक्ति के हित में है इससे समाज का भी हित होता है। संशोधन समिति के सदस्यों का कहना भी गलत है कि भारतीय संविधान में केवल मूल अधिकारों पर ही बल दिया गया है और समाज के प्रति नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। संविधान के उपबन्धों में ध्यान देने से यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारे संविधान में जहाँ नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान किये गये हैं, वहीं उन कर्तव्यों को भी अधिरोपित किया है। नागरिक अपने मूल अधिकारों का प्रयोग सार्वजनिक हित के विरुद्ध नहीं कर सकता है। राज्य को लोकहित में उसके मूल अधिकारों पर निर्बन्धन लगाने की शक्ति प्राप्त है।
मूल कर्त्तव्यों के स्रोत
यह उल्लेखनीय है कि विश्व के किन्ही भी लोकतन्त्रात्मक संविधान में केवल जापान को छोड़कर कनाडा और आस्ट्रेिलिया में नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य सामान्य और न्यायिक निर्णयों द्वारा विनियमित होते हैं। अमेरिका में संविधान में मूल अधिकारों का ही उल्लेख है। इसके बावजूद उपर्युक्त देशों के नागरिक कर्तव्यपरायण है और सामान्य एवं देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व का पूर्णरूपेण निर्वाह करते हैं।
परन्तु साम्यवादी देशों के सविधानों में अधिकारों की अपेक्षा नागरिकों के मूल कर्तव्यों पर विशेष बल दिया जाता है और उसका स्पष्ट उल्लेख पाया जाता है। सोवियत संघ के संविधान के 7वें अध्याय में नागरिकों के मूल कर्तव्यों का विस्तार से उल्लेख किया गया है। सोवियत संघ के संविधान के अनुसार प्रत्येक सोवियत नागरिक का यह कर्तव्य था कि वह संविधान का पालन करें, देश के कानूनों का पालन करें (अनु0 56), कर्मकारों में अनुशासन बनाये रखे (अनु060)। अनुच्छेद 61 के अधीन प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य था कि वह देश की सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करें अनु0 63 के अनुसार नागरिक के लिए सैनिक सेवा अनिवार्य थी और प्रदेश की सुरक्षा करना उसका पावन कर्तव्य है।
साम्यवादी देशों के संविधान में नागरिक के मूल कर्त्तव्यों का उल्लेख था वहीं काम पाने का भी अधिकार प्राप्त था। भारतीय संविधान में नागरिकों को काम पाने के अधिकार को भी स्थान प्रदान किया गया है। भारतवर्ष में मूल कर्तव्यों का पालन नागरिकों के लिए भी सम्भव हो सकेगा जब उनके लिए काम पाने के अधिकार की भी गारण्टी दी जायेगी।