पिछड़े वर्गों की अवधारणा का अर्थ क्या हैं? इसकी विशेषताएँ बताइए।

पिछड़े वर्गों की अवधारणा का अर्थ – देश के संविधान में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के समान पिछड़े वर्गों की परिभाषा नहीं दी गई है। इसमें केवल पिछड़े वर्गों की स्थितियों के अन्वेषण के लिये ‘आयोग’ (Commission) की नियुक्ति का प्रावधान है। अनुच्छेद 340 राष्ट्रपति को पिछड़े वर्ग सम्बन्धी आयोग की नियुक्ति प्रदान करता है। आयोग “सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों का अन्वेषण करता है और उनकी कठिनाइयों को दूर करने तथा उनकी दशा में सुधार करने के बारे में सिफारिश करता है। ” अनुच्छेद 15 (4) और 16 के अन्तर्गत राज्य सरकारें भी आयोगों की नियुक्ति करके विभिन्न पिछड़ी जातियों की आर्थिक एवं शैक्षणिक समस्याओं की जानकारी ले सकती हैं।

भारतीय संविधान में पिछड़े वर्गों का उल्लेख नागरिकों के सामाजिक एवं शैक्षणिक आधार पर किया है। पिछड़ा वर्ग समाज के कमजोर वर्गों में विशेषकर अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के सन्दर्भ में प्रयुक्त किया गया है इस अवधारणा का प्रयोग किसी भी अन्य पिछड़े वर्ग के लिये किया गया है। किन्तु अन्य पिछड़े वर्गों को न तो अनुसूचित जाति कहा जा सकता है और न अनुसूचित जनजाति, न ही उन्हें अपने आप में एक श्रेणी – माना जा सकता है। आमतौर पर उनको कमजोर वर्गों का एक ऐसा समूह माना जा सकता है जिसके सदस्य द्विज या उच्च जाति समूहों से निम्न और गैर द्विज या निम्न जातियों से उच्च होते हैं। वस्तुतः पिछड़े वर्ग से हमारा तात्पर्य द्विज या उच्च जातियों एवं द्विज या निम्न जातियों के बीच मध्यम जाति समूहों से है जो आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से पिछड़े हैं। संक्षेप में, एक पिछड़ा वर्ग सिद्धान्तः सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से पिछड़ा एक वृहद जनसमूह है जो भारतीय सामाजिक व्यवस्था में द्विज या उच्च जातियों एवं गैर-द्विज या निम्न जातियों के बीच मध्यम प्रस्थिति स्तरीय है। किन्तु वर्तमान में यह व्यवहारतः ऐसा विशिष्ट जाति समूह है जो सरकार द्वारा ‘पिछड़ा घोषित किया गया है।

कार्ल मार्क्स के अनुसार संघर्ष का सिद्धान्त।

पिछड़े वर्गों की विशेषताएँ

पिछड़े वर्गों की विशेषताएं निम्नलिखित हैं।

  1. प्रायः पिछड़े वर्ग लघु भू-स्वामी होते हैं, जो अपनी जीविकोपार्जन के लिये मुख्यतः कृषि पर आश्रित होते हैं।
  2. वे जो लघु भू-स्वामी नहीं होते हैं, बल्कि भूमिहीन होते हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में भू- स्वामियों के पास कृषि मजदूर के रूप में कार्य करके जीविकोपार्जन करते हैं। मात्रात्मक एवं संख्यात्मक रूप में पिछड़े वर्गों का आधिक्य है, किन्तु सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से। वे एकात्मक या अखण्डित समूह नहीं है।
  3. “पिछड़े वर्ग का प्रयोग उन कमजोर वर्गों के लिये किया जाता है जो दिन या उच्च जातियों से निम्न और पूर्व शूद या हरिजन अथवा निम्न जातियों से उच्च होते हैं।
  4. अन्य जाति के समान पिछड़े वर्गों की सदस्यता भी जन्म के आधार पर ही निर्धारित होती है।
  5. पिछड़े वर्गों को उच्च जातियों के बराबर लाने के लिये उनको शैक्षणिक संस्थाओं तथा सरकारी एवं गैर सरकारी नौकरियों तथा प्रोत्रतियों में रियायतें और आरक्षण दिये गये हैं।
  6. भारतीय संविधान के अनुसार सिद्धान्ततः कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी जाति धर्म या सम्प्रदाय का ही क्यों न हो, यदि वह सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा है तो उसे पिछड़े वर्गों की श्रेणी में रखा जा सकता है। परन्तु वर्तमान में व्यवहारतः पिछड़ेपन का आधार जाति विशेष होने के कारण पिछड़े वर्गों की श्रेणी में शिक्षा एवं आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न व्यक्ति भी सम्मिलित हो सकते हैं। कारण यह है कि सरकार ने कुछ जातियों को पिछड़ी घोषित किया है।
  7. घोषित पिछड़ी जातियाँ सरकार द्वारा प्रदत्त लामों और सुविधाओं को प्राप्त करने के लिये अधिकृत हैं। यही कारण है कि अनेक जातियों ने पिछड़े वर्ग की श्रेणी में अपने को रखने की माँग की है।

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