संघ लोक सेवा आयोग की संरचना – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 (1) में कहा गया है कि “समस्त भारत के लिये एक संघ लोक सेवा आयोग होगा एवं प्रत्येक राज्य के लिये पृथक-पृथक लोक सेवा आयोग होंगे। इस प्रकार भारतीय संविधान द्वारा दो प्रकार के लोक सेवा आयोगों की व्यवस्था की गयी है। पहली संघ लोक सेवा आयोग और दूसरी राज्य लोक सेवा आयोग
संघ लोकसेवा आयोग: रचना या गठन संघ लोकसेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति, उसके सदस्यों की संख्या और सेवा शर्तों का निर्धारण राष्ट्रपति करता है। वर्तमान समय में संधीय लोकसेवा आयोग में एक अध्यक्ष और 10 अन्य सदस्य हैं।
सदस्यों की योग्यताएं तथा पदावधि
लोकसेवा आयोगों का मुख्य कार्य लोकसेवाओं के लिए योग्य व्यक्तियों का चुनाव करना होता है। इसलिए यह नितान्त आवश्यक है कि लोकसेवा आयोगों के सदस्य व्यापक रूप से अनुभवी हों तथा उनमें उचित निर्णय कर सकने की क्षमता हो। इसी कारण संविधान ने लोकसेवा आयोग के सदस्यों के लिए कुछ योग्यताएं आवश्यक मानी हैं। संविधान ने उपबन्धित किया है कि लोकसेवा आयोग के सदस्यों में से कम- से-कम आधे सदस्य ऐसे होंगे, जो अपनी-अपनी नियुक्तियों की तारीख पर भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कम-से-कम 10 वर्ष तक पद धारण कर चुके हों। सदस्यों के कार्यकाल के सम्बन्ध में व्यवस्था है कि संघ लोकसेवा आयोग का सदस्य अपने पद ग्रहण की तिथि से 6 वर्ष की अवधि या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी इनमें से पहले हो, अपने पद पर बना रहेगा।
सदस्यों की पदच्युति,
संविधान के अनुच्छेद 317 में लोकसेवा आयोग के सदस्यों को पदच्युत करने की रीति का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार, निम्न परिस्थितियों में राष्ट्रपति किसी सदस्य को पदच्युत कर सकता है:
- यदि यह दिवालिया हो।
- यदि वह अपने कार्यकाल में अपने पद से भिन्न कोई वैतनिक पद स्वीकार कर ले।
- यदि वह व्यक्ति राष्ट्रपति के विचार में मानसिक तथा शारीरिक अवस्था के कारण अपने पद पर कार्य करने में अक्षम हो जाय।
इसके अतिरिक्त, यदि कोई सदस्य दुराचार, रिश्वतखोरी या भ्रष्टाचार करे, तो राष्ट्रपति उसे अपने आदेश से पद से हटा सकता है। इस सम्बन्ध में राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय से परामर्श करता है और उच्चतम न्यायाल अभियोग की जांच करके इस सम्बन्ध में अपना मत देता है जिसके आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा निर्णय किया जाता है।
संघ लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का वेतन तथा उनकी सेवा शर्तें राष्ट्रपति द्वारा निश्चित की जाती है। नियुक्ति के बाद उनकी सेवा शर्तों में उनके हित के विरुद्ध कोई परिवर्तन नहीं किया जाता सकता है। राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह आयोग के अन्य कर्मचारियों तथा उनकी सेवा शर्तों को निर्धारित करे।
लोकसेवा आयोग के कार्य
संविधान के अनुच्छेद 220 के अनुसार लोकसेवा आयोग के निम्नलिखित कार्य निर्धारित किये गये हैं
(1) नियुक्ति सम्बन्धी कार्य (प्रतियोगिता परीक्षाओं की व्यवस्था )
लोकसेवा आयोग का एक प्रमुख कार्य शासन के प्रमुख पदों हेतु चयन कर नियुक्ति की व्यवस्था करना है। विभिन्न विभागों में रिक्त हुए स्थानों की सूचना शासन द्वारा लोकसेवा आयोग की दी जाती है। आयोग इन स्थानों की पूर्ति के लिए लिखित या मौखिक अथवा दोनों प्रकार की परीक्षाएं आयोजित करता है। आयोग परीक्षा के नियम तथा कार्यक्रम व प्रार्थी की योग्यता के विषय में कुछ बातें निर्धारित करके उनका प्रकाशन समाचार-पत्रों में करता है। वह परीक्षाओं में भाग लेने के लिए सम्पूर्ण भारत या कुछ परिस्थितियों में किन्हीं विशेष क्षेत्रों के निवासियों से प्रार्थना-पत्र आमन्त्रित करता है। इन परीक्षाओं के आधार पर उनके द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति हेतु सुयोग्य व्यक्तियों का चयन किया जाता है।
(2) राज्य सरकारों की सहायता करना
यदि दो या दो से अधिक राज्य संघ लोकसेवा आयोग से किसी ऐसी नौकरी पर नियुक्ति की योजना बनाने में सहायता की प्रार्थना करें, जिसमें विशेष योग्यता सम्पन्न व्यक्तियों की आवश्यकता हो, तो संघ आयोग इस कार्य में राज्यों की सहायता करेगा
(3) परामर्श सम्बन्धी कार्य
लोक सेवा आयोग प्रमुख रूप से एक परामर्शदात्री समिति है जिसका कार्य सेवाओं के सम्बन्ध में शासन को परामर्श प्रदान करना है। यद्यपि सरकार आयोग के परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है, किन्तु सामान्यतः आयोग की सिफारिशों तथा उसके परामर्श को स्वीकार कर ही लिया जाता है। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति को निम्नांकित विषयों के सम्बन्ध में संघीय लोकसेवा आयोग से परामर्श लेना होता है।
- असैनिक सेवाओं तथा असैनिक पदों पर भर्ती की प्रणाली के सम्बन्ध में परामर्श।
- असैनिक सेवाओं तथा पदों पर नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानान्तरण, आदि के सम्बन्ध में अपनाये जाने वाले सिद्धान्तों पर परामर्श।
- असैनिक सेवाओं के किसी कर्मचारी द्वारा सरकारी कार्य को करते हुए शारीरिक चोट या धन की क्षतिपूर्ति के लिए किये गये दावे के सम्बन्ध में परामर्श।
- संघ सरकार के किसी कर्मचारी द्वारा पेन्शन या सरकारी मुकदमे में अपनी रक्षा में व्यय किये गये धन की क्षतिपूर्ति के दावे के सम्बन्ध में परामर्श।
- राष्ट्रपति द्वारा भेजे गये अन्य किसी भी मामले के सम्बन्ध में परामर्श।
राष्ट्रपति ऐसे भी नियम बना सकता है कि सरकारी नौकरियों से सम्बन्धित कुछ निश्चित विषयों के बारे में संघ लोकसेवा आयोग का परामर्श लेना आवश्यक न हो। परन्तु ऐसे नियमों को लागू करने के पूर्व उन्हें संसद के सम्मुख प्रस्तुत करना आवश्यक है। संसद उन नियमों में परिवर्तन कर सकती अथवा उन्हें रद्द कर सकती है। अनुसूचित जातियों जनजातियों एवं पिछड़ी हुई जातियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण और संरक्षण के सम्बन्ध में भी आयोग का परामर्श लेना आवश्यक नहीं होता है।
(4) प्रतिवेदन सम्बन्धी कार्य
संघ लोकसेवा आयोग राष्ट्रपति को तथा राज्य लोकसेवा आयोग अपने राज्य के राज्यपाल को अपना वार्षिक प्रतिवेदन देते हैं। उनका विवरण या प्रतिवेदन प्राप्त होने पर राष्ट्रपति उक्त प्रतिवेदन के साथ अपनी ओर से एक ज्ञापन भी जोड़ता है, जिसमें उन मामलों का पूरा विवरण रहता है जिन पर राष्ट्रपति में संघ लोकसेवा आयोग की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया। इस ज्ञापन में उसके द्वारा आयोग के परामर्श को स्वीकार न करने के कारणों पर प्रकाश डाला जाता है। इस प्रबन्ध से संसद को सरकारी कार्यवाहियों की जांच के सम्बन्ध में निर्णायक भूमिका प्रदान की गयी है। आयोग अपने प्रतिवेदन में लोकसेवा आयोग को सुदृढ़ करने के सुझाव भी दे सकता है।
लोकसेवा आयोग के लाभ
लोकतन्त्रीय शासन का यह एक सुनिश्चित सिद्धान्त बन गया है कि सार्वजनिक सेवाओं के लिए भर्तियां लोकसेवा आयोगों द्वारा हों। इस प्रथा से कई लाभ हैं। लोकसेवा आयोग स्वतन्त्र निकाय होते हैं। उनका यह प्रयत्न रहता है कि सेवाओं के लिए नियुक्तियां करते समय व्यक्तिगत और राजनीतिक पक्षपात न हो। इन आयोगों के द्वारा सेवाओं को राजनीति से दूर रखा जा सकता है और सेवाओं के लिए योग्यतम व्यक्तियों का चयन किया जा सकता है।