स्वतंत्रता और समानता पर लास्की के विचार लिखिए।

स्वतंत्रता और समानता पर लास्की के विचार – लास्की की स्वतंत्रता की अवधारणा अधिकारों की परिकल्पना से जुड़ी हुई है इसलिए स्वतंत्रता विशेष अधिकार नहीं वरन् अधिकारों का सार है। अर्थात् अधिकार प्रणाली का मूल तत्त्व स्वतंत्रता ही है जिसके आधार पर वह जीवित ही नहीं रहती है वरन् निरन्तर सिंचित होकर परिपुष्ट भी होती है। वह अधिकारों की जीवन रेखा है। अतः यदि उस पर कोई आघात होता है। तो परिणाम उसका अधिकारों के विनाश के रूप में प्रगट होता है।

स्वतंत्रता के अर्थ के सम्बन्ध में लास्की के विचारों में उसके चिन्तन के विकास के साथ-साथ परिवर्तन होता रहा। प्रारम्भ में बहुलवादी प्रभाव के कारण लास्की राज्य शक्ति को वैयक्तिक स्वतंत्रता का विरोधी मानता था और इस आधार पर प्रतिपादित करता है कि यदि नागरिकों की स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना है तो राज्य शक्ति की सीमाएँ निर्धारित किया जाना आवश्यक है। अर्थात् उसे सीमित किया जाये ताकि स्वतंत्रता का अस्तित्त्व बना रह सके।

लेकिन बाद में लास्की अपने चिन्तन पर मार्क्सवादी प्रभाव के कारण स्वतंत्रता के सम्बन्ध में अपनी धारणा में परिवर्तन करता है और उसे नकारात्मक से सकारात्मक चरित्र को घोषित करते हुए कहता है कि स्वतंत्रता केवल उन परिस्थितियों के अन्तर्गत ही सम्भव हो सकती है जो समाज के सर्वोच्च उद्देश्य को निर्धारित करती है। समाज के कुछ सामान्य हित होते हैं जिसके विरुद्ध किसी भी व्यक्ति को कुछ भी करने की आज्ञा नहीं दी जा सकती। यहाँ लास्की के चिन्तन में वैयक्तिक स्वतंत्रता की तुलना में सामाजिक हित अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। अब उसकी राय में सामाजिक हित के लिए वैयक्तिक हितों का बलिदान स्वतंत्रता का निषेध नहीं है।

स्वतंत्रता की इस तरह की समूहवादी परिभाषा करने के बावजूद वह उसके सम्बन्ध में अपनी पूर्ण उदारवादी धारणा से कभी मुक्त नहीं हो सका। अतः उसने समाजवादी दृष्टिकोण से स्वतंत्रता की व्याख्या करते हुए इन दोनों विचारों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया और उसे स्पष्ट करने के लिए स्वतंत्रता को तीन रूपों में विभाजित कर दिया। ये तीन रूप हैं- वैयक्तिक, राजनैतिक और आर्थिक

वैयक्तिक स्वतंत्रता की व्याख्या करते हुए उसने कहा कि यह एक ऐसी स्वतंत्रता है जो पूर्णतः एक व्यक्ति से सम्बन्धित है तथा व्यक्ति द्वारा जब इसका प्रयोग किया जाता है तो इसके प्रयोग से उत्पन्न होने वाले परिणाम सिर्फ उसी को प्रभावित करते हैं। यह व्यक्ति की अपने व्यक्तिगत मामलों के सम्बन्ध में कार्य करने की नितान्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता है। राज्य को व्यक्ति के ऐसे निजी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए वरन् उनके स्वस्थ विकास के लिए उचित अवसर देना चाहिए। वैयक्तिक स्वतंत्रता की उपर्युक्त व्याख्या में लास्की के चिन्तन पर प्रारम्भिक उदारवादी प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।

लास्की की राजनीतिक स्वतंत्रता की व्याख्या भी उदारवादी प्रभाव से प्रेरित है। यह व्यक्ति की राज्य कार्यों में भाग लेने की स्वतंत्रता की परिचायक है। स्वतंत्रतापूर्वक मताधिकार का प्रयोग, निर्वाचित होना, योग्यतानुसार शासकीय पद ग्रहण करना तथा शासकीय नीतियों की आलोचना करने के अधिकार इसके अन्तर्गत आते हैं। इस स्वतंत्रता का प्रयोग करके एक व्यक्ति एक नागरिक के रूप में अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है और सार्वजनिक कल्याणकारी कार्यों के सम्पादन में अपना योगदान प्रदान करने की स्थिति प्राप्त करता है।

आर्थिक स्वतंत्रता नागरिक की योग्यतानुसार कार्य प्राप्त करने, अवकाश का उपभोग करने एवं संकट के समय राज्य सहायता प्राप्त करने के अधिकार की प्रतीक है। आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा उसकी आर्थिक स्वतंत्रता के आवश्यक अंग हैं, जो उसे अपने परिश्रम का फल प्राप्त करने और शोषण से सुरक्षा प्रदान करती है। आर्थिक स्वतंत्रता का विचार लास्की के चिन्तन पर मार्क्सवादी प्रभाव का परिणाम है। लास्की इस स्वतंत्रता को बुनियादी महत्त्व की मानता है। और इसी पर अन्य स्वतंत्रताओं के अस्तित्व को सम्भव मानता है। आर्थिक स्वतंत्रता ही अन्य स्वतंत्रताओं को सम्पूर्ण और प्रभावपूर्ण बनाती है।

लास्की स्वतंत्रता की व्याख्या करने के पश्चात् उसकी सुरक्षा की समस्या पर चिन्तन करता है और उसके लिए अधिकारों की व्यवस्था को आवश्यक बतलाता है क्योंकि अधिकारों के माध्यम से ही स्वतंत्रता का वटवृक्ष फलता-फूलता है और व्यक्ति को वह स्वास्थ्यकर और सुखकर छाया प्रदान करता है जिसके तले बैठकर वह सामाजिक संघर्ष की भीषण गर्मी से उत्पन्न अशान्त वातावरण में शीतलता अनुभव कर शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करने में सफल होता है।

अतः वह स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए कुछ बातें निर्धारित करता है जिनका पालन करने पर सभी के लिए उसका उपभोग सम्भव हो सकता है। इस दृष्टि से वह पहली शर्त यह बताता है कि समाज में कोई विशेष सुविधा प्राप्त वर्ग नहीं हो। यदि समाज में कोई ऐसा वर्ग है तो वह अपनी विशेष सुविधाओं की सुरक्षा के लिए दूसरों की स्वतंत्रता के लिए खतरा बन सकता है। दूसरी शर्त यह है कि कुछ व्यक्तियों के अधिकार दूसरों की इच्छा पर निर्भर नहीं हो। अर्थात् समाज में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दासता या बन्धुआ प्रथा विद्यमान न हो। तीसरी शर्त के अनुसार शासक और शासित दोनों के लिए समान कानून हो तथा समान रूप से उनके पालन की व्यवस्था हो तथा कानून भंग करने पर समान दण्ड की व्यवस्था हो। चौथी शर्त- राजनीतिक सत्ता पर किसी वर्ग विशेष का एकाधिकार नहीं हो अर्थात् उस पर सामान्य जन का नियंत्रण हो

और उन्हीं की इच्छानुसार उसका प्रयोग हो। पाँचवी शर्त यह है कि राज्य द्वारा सभी के साथ समान व्यवहार किया जाये। वह पक्षपात रहित हो तथा अन्तिम शर्त के अनुसार सभी के लिये शिक्षा तथा सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा की समुचित व्यवस्था हो ताकि असुरक्षा की भावना से पीड़ित होकर नागरिक की इच्छा विरुद्ध कार्य करने के लिए बाध्य न होना पड़े।

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समानता स्वतंत्रता की व्याख्या करने के पश्चात् लास्की समानता की व्याख्या करता और उन्हें एक-दूसरे का पूरक सिद्ध करता है। उसके मतानुसार समानता के बिना स्वतंत्रता एकांगी और अपूर्ण है। समानता से लास्की का अर्थ ऐसी सामाजिक व्यवस्था से है जिसमें किसी भी व्यक्ति को इतना महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हो कि वह उसका प्रयोग करके दूसरों की नागरिकता का ही अन्त कर दे। दूसरे शब्दों में, लास्की कहना चाहता है कि समानता की यह प्रबल माँग है कि समाज से हर तरह के विशेषाधिकारों का अन्त हो। जन्म और सम्पत्ति के कारण उत्पन्न होने वाले विशेषाधिकारों के पीछे कोई नैतिक औचित्य नहीं है। इसलिए ऐसी मारी विषम स्थितियों का अन्त होना चाहिए ताकि सभी लोगों को बिना भेद-भाव के अपनी प्रतिभा और क्षमता को विकसित करने के समान अवसर उपलब्ध हो सकें। अवसर की समानता ही लास्की की समानता की सच्ची परिभाषा है जो हर तरह की विषमता से शून्य समाजवादी राज्य में ही सम्भव है।

अवसर की समानता सभी को प्राप्त हो सके इसके लिए यह आवश्यक है कि एक न्यूनतम जीवन स्तर सभी को प्राप्त हो जिससे कि हर व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार आत्मविकास करके एक उपयोगी जीवन व्यतीत कर सके ऐसा न्यूनतम जीवन स्तर हर व्यक्ति को प्रदान करने के लिए यदि कुछ व्यक्तियों की स्वतंत्रता को सीमित किये जाने की आवश्यकता हो तो निसंकोच ऐसा किया जाना चाहिए। धन-सम्पत्ति के न्यायपूर्ण वितरण के लिए आर्थिक-सामाजिक नियोजन के माध्यम से यह उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है।

इस तरह एक समाजवादी राज्य सामाजिक और वैयक्तिक हित में स्वतंत्रता का नियंत्रण कर समाज में समानता की स्थिति उत्पन्न करता है ताकि उसके स्वतंत्रता विहीन सदस्य भी स्वतंत्रता का रसास्वादन कर सकें। उसमें अपने जीवन को सुखी और सम्पन्न बना सकें और एक सर्वांगीण समृद्ध समाज की रचना में अपना योगदान दे सकें। अतः लास्की द्वारा प्रतिपादित स्वतंत्रता और समानता के विचारों में कोई मौलिक अन्तर्विरोध नहीं है। वे एक-दूसरे के पूरक हैं और समाज तथा व्यक्ति दोनों को पूर्णता प्रदान करने वाले हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि, “स्वतंत्रता और समानता की परिकल्पनाओं का न्यायोचित सामंजस्य ही लोकतांत्रिक समाजवादी चिन्तन का सैद्धान्तिक आधार है।”

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